- Harish Jharia
सभी धर्मावलंबी एक ही नस्ल और समाज से उत्पन्न हुए हैं
मुझे अपने बचपन (1955 के आस-पास) की एक बात हमेशा याद आती है जब हमें यह पता ही नहीं होता था कि नरसिंह्पुर का एक पूरा का पूरा मोहल्ला मुसलमानों का था। उस मोहल्ले के बारे में हम तो यही समझते थे कि सारे सब्ज़ी बेचने वाले एक ही जगह में रहते थे। वहाँ के बच्चों के साथ बारिश के दिनों में हम सींगरी नदी के पुल के ऊपर से बाढ़ के उफ़नते हुए मटमैले पानी में छलाँग लगाते थे।
सुना ज़रूर था कि नरसिंह्पुर में मुसलमान भी रहते थे जो सुबह-सवेरे मस्जिद के ऊपर से अज़ान लगाया करते थे। लोग कहते थे कि मुहर्रम के दिनों में नेज़ा लेकर जुलूस में मुसलमान निकला करते थे। पर यह समझ में नहीं आता था कि उन जुलूसों में हम लोग क्यों जाकर इत्र चढाया करते थे और अपने सर पर मोरपंख के गुच्छों का स्पर्ष करवा कर दुआएं लेते थे। यह तो हमें स्वाभाविक ही लगता था जब करबला में होने वाली कव्वालियों में रात-रात भर हमारे परिवार के लोग बैठे रहा करते थे।
नज़दीक ही सदर में ‘सेवा चाचा’ रहते थे जो हमारे स्कूल का घंटा अपनी विशेष स्टाइल में बजाते थे जिसकी आवाज़ हमारे घर तक सुनाई पड़ती थी। सेवा चाचा के चेहरे पर फ़ैले हुए प्रेम और करुणा के भाव मुझे आज भी जस-के-तस याद हैं। मैने सेवा चाचा को नरसिंह्पुर में हुए एक महायज्ञ की यज्ञवेदी की परिक्रमा करते हुए देखा था।
मुझे नहीं मालूम था कि रूई धुनकने वाले परिवार के मुखिया सेवा चाचा मुसलमान थे और मेरी जन्मभूमि में फल-सब्ज़ी का कारोबार करने वाले परिवारों के बच्चे मुझसे अलग समाज के हुआ करते थे। यह तो मुझे तब पता चला जब 1965 के आस-पास दस साल बाद मैं नरसिंहपुर पहुंचा। तब पूरा का पूरा माहौल बदल चुका था। सेवा चाचा का परिवार अलग सा नज़र आने लगा था और मेरे साथ सींगरी नदी में छलाँग लगाने वाले बच्चे बड़े हो चुके थे और अजनबी से नज़र आने लगे थे।
बड़ी सी खाई पैदा हो गई थी लोगों के बीच में। हिंदू पहले ही नीची और ऊँची जातियों में बँटे हुए थे। समय के साथ-साथ मुसलमान और ईसाई भी दूर-दूर हो गए। हर समाज अलग-थलग हो गया। राजनीतिबाज़ चुनाव जीतने के लिए भारतीय समाज को टुकड़ो-टुकड़ो में तोड़ते गए यहाँ तक कि उन्होंने हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिक्खों को भी अलग-थलग कर दिया।
देश और सरकार चलाने के लिये यह सब बिलकुल ज़रूरी नहीं था। चुनाव जीतने के और भी तरीके निकाले जा सकते थे। वैसे भी भारतीय संविधान के अनुसार देशवासियों को धर्म, जाति और नस्ल के आधार पर बाँटना गलत है।
आज हम सभी भारतीयों को राजनीतिबाज़ों की “फ़ूट डालो और राज करो” (divide and rule) नीति से सावधान रहना ज़रूरी है और देश वासियों में आपसी बैर भी नहीं पैदा होने देना चाहिए। चुनाव पास आ रहे हैं। हम सभी को वोट देते समय यह याद रखना चाहिए कि भारतीय समाज को आपस में बाँट्ने वाले राजनीतिबाज़ों को सही सबक दिया जाय्।
भारत भूमि पर पैदा हुए सभी धर्मावलंबी एक ही नस्ल और समाज से उत्पन्न हुए हैं और उनके पूर्वज अलग-अलग नहीं हो सकते। अगर हमें देश में व्याप्त धर्म के नाम पर हो रही असमानता को दूर करना है तो उसका एक ही रास्ता है कि बटवारा करने वाले राजनीतिबाज़ों के स्थान पर ऐसे लोगों को सरकार में लाया जाए जो हिंदुस्तानियों को धर्म के नाम पर ना बाँटें और एक संगठित भारतीय समाज का निर्माण करें।
यह याद रखना जितना ज़रूरी हिंदुओं के लिए है उतना ही आवश्यक मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी है क्योंकि, राजनीति के अखाड़े में हर मज़हब की आवाम अकेली पड़ जाती है और खेल खेलने वाले हमें पछाड़ देते हैं।
हम हज़ारों सालों से गुलाम रहे हैं; आज़ादी के बाद भी स्वतन्त्र नहीं हुए और आगे भी प्रजातंत्र के प्रत्यक्ष दर्शन होने की उम्मीद हमें नज़र नहीं आ रही है।
हरीश झारिया,
26 December 2011
------------------------------------------------------------------------------------
npad