Harish Jharia

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18 July 2009

Are We Close To Our Roots?

Village Original

New Delhi, India, 6 December 2007

© Harish Jharia

Yes, we are holding a keyboard under our fingers, a monitor in front and roaming around the world through internet. We have progressed to the optimum beyond which we do not really desire to excel. We have all the luxuries at our command to make our life comfortable.

We do not stand in queues for fetching a couple of kilos of sugar from the ration shop. We do not run behind the bus to board for our office. We do not care to change the refill of our ball pen, rather throw it in the dust bin and buy a new one. We buy so many things from the market that we do not need and some times find one lying in a corner of our room, untouched and well packed in the shopper’s wrapper. We do so many things that we are not supposed to do.

Anyways, all such things are parts of our professional fast lives in the modern corporate world. Nevertheless, we are the same Indians, the sons and daughters of our parents, born and brought up in some villages or towns like Narsinghpur, Kareli, Gadarwara, Jabalpur, Sagar, Damoh, Khairi, Gwalior, Bhind, Moraina, Mandla, Dindori, Raipur, Bilaspur. Bhopal, Indore Ujjain, Ratlam etc.

We do remember the hardships we went through to achieve the position we hold today. That is why whenever we go to our hometown we meet our relatives and friends with warmth and respect. We do not speak Hindi in English accent. We speak our mother tongue, the dialect of our rural world.

We have not changed. We are close to our roots.

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npad

Recall our childhood days and Hindi nursery rhymes...


Compiled and interpreted by - Harish Jharia

एक बीज के भीतर गुपचुप
मिट्टी की तह में कुछ नीचे
नन्हा- नन्हा प्यारा पौधा
पड़ा हुआ था आंखें मींचे

बूंदें बोलीं उठो- उठो जी
बोलीं उठो किरन की परियाँ
उठा देखने तब झटपट वह
कैसी है बाहर की दुनियाँ

तितली आई चिड़िया आई
ज्यों ही उसने आंखें खोलीं
लगी हवा में उसे झुलाने
और प्यार की बातें बोलीं

Here is the English interpretation of the Hindi nursery rhyme...

Right within a piece of seed
Just below the crust of earth
There lied a baby plant
With his eyelids closed tight

Pouring drops called him wake
Sang the fairies of sunbeams
He woke up with his flickering eyes
And watched the world with popping eyes

Butterfly came and sparrow flied
The moment he opened his eyes
And swung him in a fresh cool breeze
Singing songs of love and rejoice

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npad

13 July 2009

Fair Completion: How to Avoid Darkening of Our Skin?

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© Harish Jharia

Before we go ahead with discussion on color of our skin I would like to tell you one thing that:
Non-white complexion that we Indians have is a blessing in disguise… and that is why there are no cases of Skin Cancer in Indians and other non-white races in the world.

How does our skin become darker?

Now let us come back to our point on color of our skin. Just look at the skin of your body that is always covered with clothes and compare it with your face or your arms. You will notice a vast difference between the complexions of the two areas of your own skin. The reason is that the skin of your arms and face has turned darker due to exposure of the same to sun light.

This has happened because our skin is photosensitive like photo-chromic spectacles / glasses and this characteristic comes from the melanin present in our skin that turns dark for preventing the ultraviolet and infrared radiations of sun-shine from penetrating into the inner layers of your skin and may probably cause skin cancer.

How to prevent our skin from becoming dark:
  1. It is as simple as 1+1 = 2… just protect your skin from exposure against sun and for that you may follow the following guidelines:
  2. Use caps while going in sun
  3. Use sun-glasses / goggles while going out in sun
  4. Wear full sleeves top / shits / pans / jeans while venturing out in sun
  5. Use sun screen lotions twice a day
  6. Use lotions of Calamine composition on your face while going to bed at night
  7. You may also use fairness creams that are available over the counters
  8. Grandmother’s beauty tips made with gram flour, turmeric, rose water, etc may also be tried at night
  9. Rinse your face at least 3 – 4 times with chilled water during summers
  10. Best of luck for a successful beautification mission…
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npad

Short Story: Sapanon Kaa Ghar - सपनों का घर (The Dream House)



Exclusively written for 'Discover Life'

कहानी: सपनों का घर 

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Copyright © 2009 [Harish Jharia] All Rights Reserved
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© हरीश झारिया

कहानी कहते-कहते माँ सो जाती थी और मैं कहानी में आगे होने वाली संभावित घटनाओं की कल्पना करता हुआ जागता रहता। मां की कहानियों में अक्सर एक राजा हुआ करता था जो अपनी रानी और राजकुमार को घर में छोड़कर कहीं दूर खजाने की खोज में चला जाता था। मुझे ऐसा लगता जैसे वह राजा, और कोई नहीं, बल्कि मेरे बाबा हों जो ढेर सारे पैसे लेने परदेस गए थे। मैं कल्पना करता कि जब बाबा पैसे लेकर आएँगे तो फिर मां रोया नहीं करेगी। जब देखो तब कहती रहती थी…
“पैसे नहीं हैं… पैसे नहीं हैं”

तब मैं नहीं जानता था कि पैसे क्या होते हैं। पर यह कहानी मुझे बड़ी पसन्द थी क्योंकि कहानी के अंत में राजा खजाने को हासिल कर लेता है और उसके परिवार में सारी ख़ुशियाँ लौट आती हैं। मेरे मन के किसी कोने में बिना पिता का परिवार अधूरा सा लगता था। अकेली मां का संघर्ष खटकता था। गांव से दूर, खेतों से घिरे एकाकी मकान का जीवन कुछ अजीब सा लगता था जहां मां और मेरे सिवा और कोई नहीं होता था।

इन सारी बातों की अस्पष्ट सी यादें मेरी स्मृति में आज भी बाकी हैं, क्योंकि तब मैं लगभग चार-पांच साल का था। मैं मां के साथ खाट पर सोया करता था। नींद आने के बाद मां की सांसों की आवाज़ सुनाई पड़ने लगती थी तो मैं डर जाया करता था और मां से लिपट जाया करता था। नींद में भी मां को मेरे हिलने का पता लग जाता और वह मुझे अपने पास खींच लेती थी। मुझे पता ही नहीं चलता और नींद आ जाती थी।

मां और मैं एक छोटे से घर में अकेले रहते थे। गांव के बाकी घर काफ़ी दूर थे। एक कमरा था, एक रसोई थी और चारों ओर बरामदे थे। ऊपर खपरैल का छप्पर था जो बरामदों तक सागौन के खम्भों के सहारे टिका हुआ था। घर के चारों ओर हमारे खेत थे जिनमें दिन भर मां काम करती रहती थी। पीछे के बरामदे में एक गाय बंधी रहती थी। सामने एक कुआं था और पास ही था एक तुलसीकोट। सुबह मां नहाने के बाद तुलसी में जल चढ़ाती और उसकी परिक्रमा करती थी। शाम के समय फिर मां वहां दिया जलाती जिसकी लौ देर रात तक टिमटिमाती रहती थी और अगरबत्ती की सुगन्ध से वातावरण महकता रहता। मैं हर समय और हर जगह मां के आस पास ही रहता था। ज़रा सा आंखों से ओझल हुआ नहीं कि बस मां घबरा जाती और पुकारने लगती…
“ओ रे… भैया… कहां गया रे”

जब मां मुझे ढूँढती तो मुझे बड़ा अच्छा लगता था मैं दौड़ कर उसके पैरों से लिपट जाया करता था। मैं वज़न में काफ़ी भारी था। मुझे उठाने में मां को बड़ी मुश्किल जाती थी पर वह कभी-कभी मुझे उठा ही लेती थी। मुझे उसकी गोद में स्वर्ग का सुख मिलता था। मां कहती रहती थी… 
“बहुत कम खेत हैं हमारे पास …”

यह मैं नहीं जानता था कि खेतों के कम या ज्यादा होने से क्या फ़र्क पड़ता है । मुझे तो ऐसा लगता था कि जितने कम खेत होंगे मां को उतना ही कम काम करना पड़ेगा और उतना ही अधिक वह मेरे साथ रहेगी।

मां पोस्टमैन के आने की प्रतीक्षा करती रहती थी। बाबा की चिट्ठी जो लाता था वह। पोस्टमैन कभी-कभी पैसे भी लाता था जो बाबा भेजा करते थे। जब चिट्ठी आती तो मां रोती और रात में उठ-उठ कर चिट्ठी पढ़ती थी। पैसे आने पर वह और ज्यादा रोती और रात में बार-बार रो-रो कर पैसों को गिना करती। फिर सुबह होने पर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट देख मैं खुशी से उछल पड़ता और दौड़ कर उसके पैरों से लिपट जाता। उस दिन मां आलू के परांठे बनाती थी या कभी-कभी पकौड़े तलती। फिर मुझे साथ लेकर गांव जाती और थैले भर-भर कर दुकान से सामान खरीद कर लाती। उसके बाद कई दिनों तक मां बड़ी खुश रहा करती थी। 

दो वर्ष पहले बाबा आए थे। तब की मुझे याद नहीं है क्योंकि मैं छोटा था। मां बताती है कि उन्हीं दिनों बाबा ने बिजली और बोरवैल लगवा दिए थे। तब से मां की सिंचाई के लिये की जाने वाली मेहनत बचने लगी थी और घर में उजाला हो गया था। मां कहती कि हमारा ट्रैक्टर आ जाता तो काम करने में आसानी हो जाती। फिर बाबा भी परदेस से वापस आकर हमारे साथ ही रहने लगते। मां हर समय बाबा के लौटने के बाद के दिनों की कल्पना करती रहती थी। कहती…
“बाबा ट्रैक्टर से खेती करेंगे, मैं चलाउँगी घर और तू जाना स्कूल और पढ़ लिख कर बनना… बड़ा बाबू”

मां का मानना था कि बाबा स्वस्थ और आकर्षक व्यक्ति थे और मेरी शक्ल और काठी भी ठीक उन्हीं की तरह थी। इस बात का मतलब मैं नहीं समझता था। पर ऐसा लगता था कि वह मेरे और बाबा के बारे में कुछ अच्छा कहती थी क्योंकि यह कहते वक्त मां का चेहरा खुशी से दमकने लगता था। मैं यह सुनकर मन ही मन बड़ा खुश होता था और बाबा से मिलने और उन्हें देखने के लिये उत्सुक हो जाता।

मां कहती थी कि जब पिछली बार बाबा आए थे तो लगभग एक माह तक रहे थे। हर समय मुझे गोद में उठाए रहते थे। साथ में सुलाते, नहलाते और अपनी गोद में बिठाकर खाना खिलाते थे। जब वह जाने लगे थे तो सुबह से ही मुझे अपने सीने से लगाए रहे और विदा होते समय उदास हो गए थे। मां कहती थी कि उनकी चिट्ठियों में ज्यादातर मेरे बारे में ही लिखा रहता था और वह मुझसे मिलने के लिये तरसते रहते थे।

जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा था वैसे-वैसे मेरे मन में बाबा को देखने और उनसे मिलने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। मैं जब-तब मां से कहता कि बाबा को जल्दी आने के लिए चिट्ठी लिखे। यह सुनकर मां रोने लगती और मुझे पश्चाताप होता क्योंकि यह बात कहने की गलती मुझसे बार-बार हो जाया करती थी। तब मां खींच कर मुझे अपने गले से लगा लेती थी और देर तक सुबकती रहती थी।

मां की आंखें बड़ी-बड़ी थीं, उनमें ढेर सारे आंसू भरे थे जो कभी भी बहने लगते थे। मैं अपने हाथों से उसके आंसू पोंछ्ता लेकिन वह थमने का नाम नहीं लेते थे। मां रोना छोड़ डबडबाई आंखों से मेरी आंखों में देखने लगती और उसके चेहरे पर मुस्कान जैसी आ जाती थी… और भरे गले से कहती- 
“बड़ा सयाना हो गया है रे…”

मैं सोचता कि अब की बार जब मां मेरे आंसू पोंछेगी तब मैं भी ऐसा ही कुछ कहूँगा। मैं सब कुछ मां ही से सीख रहा था। उठना बैठना, खाना पीना, बातचीत और अन्य सब बातें मां की ही नकल करके मैने सीखी थीं। मैं मां कि परछांई की तरह हरदम उसके ही इर्दगिर्द मँडराता रहता था। कुछ देर अगर मां नहीं दिखती तो मैं बेचैन हो जाता और रोने लगता था।

मां जब खेतों में काम करने जाती तो मुझे साथ में ले जाया करती थी और छतरी पकड़ा कर अपनी आंखों के सामने बिठाए रखती थी। मां पसीने में तर-बतर हो जाया करती और उसका चेहरा लाल हो जाया करता था। उसके हाथ पैर मिट्टी में सन जाते और बाल उलझ कर बिखर जाते थे। मैं छतरी में से उसे आवाज लगाता…
“मां… मुंह पोछ ले…”

जवाब में मां हंस देती थी। दौड़ कर मेरे पास आती और पोटली में से एक रोटी निकालकर मेरे हाथ में पकड़ा देती। गजब की फ़ुर्ती और ऊर्जा थी माँ के शरीर में। मैंने उसे कभी थक-हार कर निढाल बैठे हुए नहीं देखा।

पोस्टमैन दोपहर में आया करता था। मां कई दिनों से रोज उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। सामने के बरामदे में दीवार से टिक कर बैठ जाती थी और घर के सामने पेड़ों के झुरमुट की ओर टकटकी लगाए देखती रहती। आखिरकार एक दिन पेड़ों के पीछे मोड़ से पोस्टमैन की साइकिल अवतरित हुई तो मां चौंककर उठ-खड़ी हुई और बरामदे के खम्भे से टिककर देखने लगी कि पोस्टमैन किस तरफ़ का रुख करता है और जैसे ही वह हमारे घर की ओर मुड़ा, उसके मुंह से हल्की सी चीख निकल गई। मैं दौड़कर उसके पैरों से लिपट गया और मां ने मुझे कस कर पकड़ लिया।

पोस्टमैन आया, उसने चिट्ठी और पैसे मां को दिये और पानी पीकर चला गया। चिट्ठी पढ़कर मां खुशी से पागल हो गई। मेरे गालों को अपनी हथेलियों में लेकर उसने मेरा माथा चूम लिया और कहा…
“ऐ…रे भैया…! बाबा कल आ रहे हैं… और सुन रे…! वो फिर कभी हमें छोड़ कर नहीं जाएंगे… सुना तूने…?”

मां दौड़ कर भीतर गई, कलैन्डर ले आई और फ़र्श पर बिछा कर बार-बार दिनों और तारीखों पर उंगली फिराती रही। कभी हंसती थी तो कभी ठोढ़ी पर उंगली रख अपने आप से बातें करने लगती। मैंने माँ को इससे पहले कभी हँसते हुए नहीं देखा था। यह मैने पहली बार देखा कि मां हँसती हुई कैसी लगती थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं कभी मां को देखता, कभी कलैन्डर को तो कभी बाबा की चिट्ठी को।

बाबा बस से आने वाले थे। बस के निकलने का रास्ता हमारे घर से दिखता तो नहीं था पर अधिक दूर भी नहीं था। पर मैने तब तक बस नहीं देखी थी। उस दिन बाबा आने वाले थे। मां कान लगाए बस की आहट ले रही थी। उस दिन मैने भी सुनने की कोशिश की और पहली बार मेरे कानों में गाड़ियों की आवाज़ें सुनाई पड़ने लगीं। मां गरदन तिरछी करके सुनती और बताती कि यह ट्रैक्टर की आवाज़ है और मैं सर हिला कर कहता…
“हूं…”

बाबा के आने का समय पास आता जा रहा था। मां और मैं एड़ियां उठा-उठा कर दूर तक देखने की कोशिश कर रहे थे। एकाएक मां ने देखा कि बाबा आ रहे हैं। मां दौड़ पड़ी और थोड़ी दूर जाकर ठिठक गई। मैं भी मां के पास जाकर उसके पैर पकड़ कर उसके पीछे से झांक कर बाबा को देखने की कोशिश करने लगा।

शाम की धूप में पेड़ों की परछाइयां दूर तक फैल गई थीं। बाबा का चेहरा सीधी धूप पड़ने से दमक रहा था। वे बहुत लम्बे चौड़े थे। इतना विशाल आकार अभी तक मैने किसी का नहीं देखा था। मां के पैर कांपने लगे थे और मैं उसके पीछे छुपने लगा था। तभी बाबा की आवाज़ आई…
“कैसी हो…”

उनकी आवाज़ बड़ी मीठी थी। मेरा मन करने लगा कि उनके पास जाऊँ और उनको छू लूँ। इसी बीच उन्होंने अपने मजबूत हाथों से मुझे गोद में उठा लिया और ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगे।

उनके पीछे एक ट्रैक्टर में उनका सामान लदा था। बाबा ने मुझे नीचे उतारा और ट्रैक्टर से सामान उतरवाकर एक तरफ़ के बरामदे में रखवाने लगे। पूरा बरामदा हमारे सामान से भरता जा रहा था।

मैं मां का हाथ पकड़े खड़ा था और मां ने बरामदे के खम्भे का सहारा ले रखा था। मैंने मां से पूछा…
“मां… यह सारा सामान कहां रखेंगे…?”

सुनकर बाबा बोले…
“बड़ा मकान बनवाएंगे… सारा सामान आ जायगा…”

सामान के साथ एक मोटरसाइकिल और बिजली का पंखा भी था जिन्हें देख मैं खुशी से उछल पड़ा और उनकी ओर उंगली दिखाकर बोला…
“मां… देख…देख तो…!”

मां ने मेरे गाल पर हल्की चपत लगाते हुए कहा…
“चुप कर… शैतान”

बाबा ने सर घुमा कर देखा और हंसने लगे।

काम समाप्त होते-होते दिन डूब गया। मां की रसोई से खाने की खुशबू आने लगी थी। सब्जी में राई-जीरे के तड़के की, हरी-धनिया हरी-मिर्च की चटनी की और आग पर रोटियों के सिकने की सुगन्ध से मेरे मुंह में पानी भर आया।

बाबा ने पंखे का तार लगाया, बटन दबा दी और पंखा चल पड़ा। पहले भी मैने दुकानों पर पंखा देखा था पर उसकी हवा का अनुभव मुझे पहली बार हुआ। बाबा पालथी मार कर फर्श पर बैठ गए। मां ने उनके सामने थाली परसकर रख दी। बाबा ने मुझे पास में बुलाया और सामने बिठा लिया। बाबा के साथ खाने में मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था पर मेरा ध्यान पंखे के साथ घूमता-घूमता मोटरसाइकिल के साथ उड़ान भरने लगा। मैं सोचने लगा कि बाबा कब मोटरसाइकिल पर बिठाकर मुझे घुमाने ले जाएंगे।

मां गैस के चूल्हे पर रोटियाँ सेक-सेक कर गरम-गरम बाबा की थाली मे परसती जा रही थी। मां का चेहरा खुशी से दमक रहा था। बाबा शहर के संस्मरण सुनाते जा रहे थे और यह भी कि वहां मां और मुझे एक पल के लिये भी नहीं भूले थे। बाबा की बातें खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। मां कुछ नहीं बोल रही थी केवल उसकी पायल और चूड़ियों की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी।

मां और बाबा दौनों को एक साथ पाकर मुझे एक अलग तरह की खुशी और परम संतोष का अनुभव हो रहा था। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मुझे बाबा ने उठाकर अपनी गोद में सुला लिया और कब मेरी आंख लग गई।

सुबह जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने आप को बरामदे में बाबा के साथ खाट पर सोया हुआ पाया। मां उठकर स्नान कर चुकी थी और तुलसी में जल चढ़ा रही थी। उसकी पायलों और चूडियों की आवाज़ में उस दिन एक अलग सी खनक सुनाई पड़ रही थी। मैंने सर घुमाकर मां की ओर देखना चाहा तो बाबा ने मुझे अपनी ओर खींचकर चिपटा लिया। तब मुझे पता चला कि बाबा जागे हुए थे। मेरा सर बाबा के सीने पर रखा हुआ था और मैं उनकी सांसों की आवाज़ साफ़-साफ़ सुन रहा था। बाबा का मजबूत हाथ मेरे गिर्द लिपटा हुआ था। मुझे लगा कि ऐसे ही बाबा के साथ चिपटा रहूं कि तभी मां ने मुझे आवाज लगाई…
“ओ रे… भैया… अब उठ भी जा… और कितना सोएगा…?”

मैने सर उठा कर बाबा की ओर देखा, बाबा ने भी मेरी ओर देखा; वह हंसे और मुझे अपनी बांह में पकड़े-पकड़े उठ खड़े हुए। उन्होंने मुझे अपनी पीठ पर बिठा लिया और बोरवैल की ओर दौड़ पड़े। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं चिड़िया की भांति हवा में उड़ रहा होऊं। मैं दौनों हाथों की मुट्ठियाँ आकाश की ओर तान कर मारे खुशी से चिल्ला पड़ा…
“हो…हो…हो…हो…

मैंने और बाबा ने बोरवैल के पानी में खूब नहाया। बाबा ने रगड़-रगड़ कर मेरे हाथ पैर साफ़ किये, तौलिये से पोछा और कपड़े पहनाकर कंधे पर बिठा दौड़ते हुए घर ले आए। जैसे-जैसे घर पास आ रहा था आलू के परांठे की सुगंध बढ़ती जा रही थी। दरवाजे के भीतर प्रवेश करते ही मुझे कस-कर भूख लग आई। 

हम दौनों जैसे ही रसोई के फर्श पर जाकर बैठे मां ने एक थाली में आलू के परांठे और एक कटोरी में दही लाकर रख दिया। बाबा ने पहला निवाला तोड़कर मुझे खिलाया और फिर हम दौनों देर तक परांठे खाते रहे।

पेड़ों की छाया सिकुड़ने लगी थी और धूप में तीखापन आ गया था। बाबा और मैं आगे के बरामदे में खाट पर बैठे बातें कर रहे थे। बाबा ने सामने पेड़ों के झुरमुट के पीछे से दो मोटरसाइकिलें आती हुई देखीं। मां को भी इसकी आहट मिल गई। उसने दरवाज़े की ओट से झांककर देखा तो आगबबूला हो गई। उसके मुंह से गुर्राहट सी निकली…
“लो… मिल गई इन निठल्लों को खबर… आपके आने की…! चोर… उठाइगीर हैं… पक्के नसाखोर… इस्मैक चल रही है… गांव में इस बखत… आप भी जादा मुंह ना लगाना इनको…”

मां बड़बड़ाती और पैर पटकती हुई आई और मुझे हाथ पकड़ कर घसीटती हुई भीतर ले गई, दरवाजा बंद कर लिया और जरा सा खोलकर बाहर की ओर झांकने लगी कि बाबा और उन आगंतुकों के बीच क्या कुछ हो रहा था। मैं भी उसकी गोद में बैठकर दरवाजे की झिरी से देखने लगा।

वे चार लोग थे और दो मोटरसाइकिलों पर आए थे। आते ही उन लोगों ने बाबा के पैर छुए और सम्मानजनक मुस्कुराहरट के साथ उनसे बातें करने लगे। बाबा ने उन्हें अपने साथ खाट पर बैठने के लिए कहा तो वह मना करते हुए फर्श पर बैठ गए। कुछ देर बातें होती रहीं। फिर बाबा ने उनमें से एक को मोटरसाइकिल की चाभी दी। वह खुशी-खुशी गया और मोटरसाइकिल को चालू करने लगा। वह नहीं चली तो उसने अपनी गाड़ी से पैट्रोल निकाल कर उसमें डाला तो बाबा की मोटरसाइकिल चल पड़ी।

वे चारों कुछ देर बाबा से बात करते रहे फिर उन्हें मिठाई का डिब्बा देकर चले गए। बाबा ने भीतर आकर बताया कि वह देवी का प्रसाद था और वे यही देने आए थे। मां की भवें तब भी क्रोध से तनी हुई थीं। दौनों ने प्रसाद खाया मुझे देने लगे तो वह फर्श पर गिर गया। मैं वैसे भी मीठी चीज़ें नहीं खाता था। बाबा उठाकर देने लगे तो मैने हाथ से उसे हटा दिया। बाबा ने भी कहा…
“चल कोई बात नहीं… नीचे गिर गया… छोड़… मंदिर चलेंगे तो प्रसाद खा लेना…”

बाबा ने मां की ओर देख मुस्कुरा कर उसके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया तो मां जहां बैठी थी वहीं दूसरी ओर मुंह करके लेट गई। बाबा ने मुझे गोद में उठाया और वे भी मुझे लेकर वहीं फर्श पर पसर गए। मैं माता पिता के बीच लेटा मन ही मन खुश हो रहा था कि कब से मां इस क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी कि बाबा हों, वह हो, मैं होऊँ और हमारा यह घर हो। उस दिन सब कुछ था हमारे पास।

खपरैल के छप्पर में जगह-जगह से धूप की रेखाएं नीचे तक खिची थीं और फर्श पर प्रकाश के गोल-गोल वृत्त बना रही थीं। आलू के परांठों का स्वाद अब भी मेरे मुंह में मौजूद था और मैं सोच रहा था कि काश माँ रोज ही आलू के परांठे बनाती। मां एक बड़ा अच्छा काम करती थी कि कुछ परांठे बचा कर रख देती थी जो हम लोग दूसरे पहर चाय के साथ खाते थे। मुझे चाय बड़ी अच्छी लगती थी। यही एक मीठी चीज़ थी जो मैं पसन्द करता था। मगर बाकी दिन शाम की चाय के साथ सूखी रोटी मैं बेमन से खाता था।

लगता था मां और बाबा सो गए थे। उनकी लम्बी-लम्बी सांसों की आवाज़ आ रही थी। मैं बाबा के मजबूत सीने से टिक कर बैठ गया और अपने आप से बातें करने लगा। बाबा ने अपना हाथ उठाया और मुझे टटोल कर फर्श पर फिर फैला दिया। सामने वाला दरवाजा उढ़का हुआ था और हवा से हिल रहा था। उसमें लटकी सांकल खनक रही थी। मैने गरदन घुमाकर देखा। दरवाजा खुलना शुरू हुआ तो खुलता ही गया और सुबह वाले चारों लोग फिर दरवाजे पर खड़े हुए दिखे। मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ जब वे सीधे भीतर घुसते चले आए और कमरे के बीचोंबीच खड़े होकर चारों ओर हरेक चीज़ को ध्यान से देखने लगे। 

उनमें से एक की नज़र मां की सन्दूक पर पड़ी और चारों के चारों एक साथ संदूक की ओर लपके। वे आपस में बात करते जा रहे थे…
“जे छोरा तो जागे है…?”
“बकवास ना कर… माल निकाल और भाग ले”

मैंने बाबा को हिलाया पर वे करवट बदल कर फिर सो गए। उन लोगों ने संदूक को तोड़ना शुरू कर दिया, शोर होने लगा मगर मां और बाबा गहरी नींद में सोते रहे। मैं बाबा से लिपट कर सांस रोक कर दुबक गया। मेरी आवाज़ गुम हो गई थी और आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी। संदूक टूट गई और उनमें से एक ने संदूक में से एक बड़ा सा बंडल निकाल लिया। चारों खुशी से पागल हो गए और क्षण भर में कमरे से बाहर भाग गए।

मुझे बाहर मोटरसाइकिलों के चालू होने की आवाज़ सुनाई पड़ी तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। आंखें पोंछता हुआ दरवाजे पर आया तो देखा कि वे लोग जा चुके थे और बाबा की मोटरसाइकिल भी गायब थी। मैं घबराकर चारों ओर देखने लगा। एक तरफ के बरामदे में बाबा का सामान रखा था। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। धूप बहुत तीखी हो गई थी और दोपहर की पेड़ों की छाया पेड़ों में ही समा गई थी। । मुझे भूख लग आई थी। मैं बरामदे के खम्भे से टिक कर बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा।

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Synonims: संतोष= satisfaction; सांसों= breaths; चिपटा= clinging;  दही= curd; आगबबूला= furious; गुर्राहट= aggressive voice; निठल्लों= jobless  उठाइगीर= thieves; नसाखोर= addicts; इस्मैक= smack drug;  बड़बड़ाती= blabburing;   घसीटती= pulling, dragging; झिरी= orifice, recess;  भवें= eye brows; शांत=  क्षण= moment; धूप की रेखाएं= beams of sunlight; वृत्त= circles; आलू= potato;  विश्वास= belief; संदूक= iron trunk; बकवास= worthless talk; अविरल= ceaseless
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Brief introduction of the short story:
© Harish Jharia
With the advent of modernization in India the urban areas have started prospering; whereas, on the other hand, the rural areas stayed backward. The farmland area has reduced and as a result of the same the agricultural land left with each farmer has also reduced to the minimum.  The educated rural youths are neither getting jobs nor are they left with the ability to work on farms and grow agricultural products.
Eventually the rural youth has migrated to the urban areas especially to the big cities and metros for earning fortunes and improves upon the way of their lives back home in their villages. This short story Dream house (Sanon kaa Ghar) has been written based on the life of a village youth who ventured out to a metro city for earning his livelihood and enough money to buy a house and modern agricultural appliances like tractor, bore well etc.  the story tells about the life of the wife and son of that youth who were left back in the village with dreams of having their own house to live.
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npad

11 July 2009

What is The Right Age for Girls to Marry

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© Harish Jharia                                

Aging starts earlier in women as compared to men and if both of you want to look equally young / old after you cross 35 years of age… then 7 - 8 year difference with the prospective groom, would be right for you.

There was an article in 7th July 09 Newspaper conveying a message that “if there is an age difference of 9 – 10 years between husband and wife than the chances of longer life for both is more”.

Couples with almost same age usually quarrel out of ego problems. If husband is 8 year senior to you then it would be quite comfortable for you to respect him and follow his advice. 

For girls, 23 is the best age for marrying because at this age they finish their degree in academics and are ready biologically, for going for a married life.

Nevertheless, girls who are going for professional degrees like BTech, BE, MBA, MTech, MS etc usually wait until 24 – 25 waiting for their academics to finish.

25 yrs of age is equally fine for professionally qualified girls… yet in my view this age is on the borderline of 27 being the maximum suitable age for girls to marry. If they cross 30 then I think it would be a bit late.

Beyond this age (30 years) the later you go for marriage the chances of problems in reproductive system would be more. There are comparatively more cases of childless couples, where the wife had married after 30.

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Disclaimer: 
This article is written based on my personal observations. My intention for publishing the same is to provide healthy reading and intellectual entertainment and not for educating the visitors. No literature or authentic books have been referred for writing the contents of this article. The visitors are advised not to refer the contents of this article for any research or testimony on scientific, geographical, political, civic or legal purposes. The visitors are further advised to consult relevant experts before adapting any information from this article. The author or the website are not responsible for any errors, mistakes, or omissions there in.
- Harish Jharia 
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Why Do We Suffer From Acidity And Gas Problems?

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Gas problems are associated with acidity and indigestion; all three of these ailments go concurrently. In fact the primary problem is acidity and indigestion; the gas problem is the result of acidity and indigestion. Our body generates acids in the form of digestive juices that are released in the stomach for breaking down chewed food that we eat, before having pushed down to the intestines for the subsequent stages of digestive process. If we eat improper food, do not chew it properly and gulp it violently along with plenty of water and or liquor associated with smoking we will surely going to be a chronic patient of gas, indigestion and acidity. In addition, if we do not do adequate physical workout and do not burn the consumed calories, then we are sure to face the extreme consequences for abusing our digestive system. Following are the Do(s) and Don’t(s) for prevention: Do (s):
  1. Follow proper time schedule for eating- breakfast at 8am, lunch at 1pm, dinner at 9pm (examples)
  2. Follow proper timings for going to sleep at 10pm and waking up at 6am (examples)
  3. Go for workout in the morning or evening- brisk running for 45min daily
  4. Chew your food properly
  5. Eat patiently without making haste
  6. Sit, stand or stroll for half an hour after taking food, before going to bed. This will help releasing the air that goes along with food and water via burping / belching
  7. Drink water about half an hour after taking food, and drink plenty of water thereafter
  8. Take plenty of fruits and salads
  9. It is a good idea to slightly grill the non-vegetarian food before going for main cooking
  10. Take light snacks like biscuits or chilled milk while feeling empty stomach
Don’t (s):
  1. Don’t drink water / liquor or any liquid along with eating. Because by doing so the digestive juices will be diluted and be ineffective for breaking down the chewed food
  2. Don’t swallow air along with food or water while eating and drinking. That will result in flatulence
  3. Don’t lie-down immediately after eating food
  4. Don’t eat spicy, deep-fried foods, red meat, junk / fast food and saturated fats
  5. Don’t overeat
  6. Don’t eat heavy food multiple times
  7. Don’t cook vegetables specially leafy greens without thoroughly washing them under running water
  8. Avoid being empty stomach as long as you suffer from this ailment
  9. Your chronic gas problem will be resolved within 4 – 7 days if you follow the above routine. Right now you may take Capsule ‘Ocid” – 20mg, empty stomach in the morning for 7 days.
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Disclaimer:
This article is written based on my personal observations. My intention for publishing the same is to provide healthy reading and intellectual entertainment and not for educating the visitors. No literature or authentic books have been referred for writing the contents of this article. The visitors are advised not to refer the contents of this article for any research or testimony on scientific, geographical, political, civic or legal purposes. The visitors are further advised to consult relevant experts before adapting any information from this article. The author or the website are not responsible for any errors, mistakes, or omissions there in. - Harish Jharia ---------------------------------------------------------------------------------------- npad

Is Religion Relevant Today?

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With my deep belief, regards and respects for all the religions in the world including in my own religion Hinduism, I recognize this widely asked question, in a global perspective, as to why this question is arising in the minds of people in current times.

Why have we started analyzing religions under scanners? Is it because modern operators of different religious bodies, institutions and organizations, are drifting from the fundamental guidelines based on which the religions were formed?

Commercialization of religion, use of religious inclination for terrorism and dividing the world community are the negative aspects of practicing religions. Some people are exploiting religions for antisocial and inhuman activities that go against well-being of human kind for which the religions were discovered.

Initially the basic purpose of introducing religions was to civilize the barbaric humans in prehistoric era. Different religions were discovered by different ‘god-men’ at different parts of the globe. However, I firmly believe that all the religions were introduced almost at the same period… same century.

All the religions preach right ways of life and the code of conduct for all the religions are also almost same:
  1. Be good, do good, speak good
  2. Don’t betray
  3. Love your neighbor, coworker, clan
  4. Get social recognition for men-women living together
  5. Marry someone other than your blood-linage
  6. Follow decency
  7. Don’t steal property of others
  8. Earn your own livelihood
  9. Provide shelter to week people
  10. Oppose torture against other living beings
  11. Etc…etc…
All the religions preach almost same philosophy; nevertheless, followers of different religions claim their own religion as better than the other. People have reduced going to the places of worship, they try to avoid following traditions as most of then do not match with the modern lifestyles.

Practicing religion has now limited itself to celebrating festivals with pomp and show and in extravagant style with the least religious formalities. They buy new clothes, get their houses painted, and few people even venture out on pilgrimage.

In view of the above the importance of religion appears to be for keeping the followers together and share celebrations and struggles of life with one another. Successively people are getting used to the new point-of-view towards religions. People of different religions, races, faiths and regions are coming closer to one another and now it is the HUMANITY that is reigning supreme and dominating over all other age-old discrimination aside.

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How to Have Fare Complexion…?

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Before answering your question I would like to tell you one thing that…

Non-white complexion that we Indians have is a blessing in disguise… and that is why there are no cases of Skin Cancer in Indians and other non-white races in the world...

How does our skin become dark?

Just look at the skin of your body that is always covered with clothes and compare it with your face or your arms? You will notice a vast difference between the complexions of the two areas of your own skin.

The reason is that the skin of your arms and face has turned dark due to exposure of the same to sun light.

This has happened because your skin is photosensitive like photo-chromic spectacles / glasses and this characteristic comes from the melanin present in our skin that turns dark for preventing the ultraviolet and infrared radiations of sun-shine from penetrating into the inner layers of your skin.

How to prevent our skin from becoming dark?

It is as simple as 1+1 = 2… just protect your skin from exposure against sun and for that you may follow the following guidelines:
  1. Use caps while going in sun
  2. Use sun-glasses / goggles while going out in sun
  3. Wear full sleeves top / shits / pans / jeans while venturing out in sun
  4. Use sun screen lotions twice a day
  5. Use lotions of calamine composition on your face while going to bed aat night
  6. You may also use fairness creams that are available over the counters
  7. Grandmother’s beauty treatment made with gram flour, turmeric, rose water, etc may also be tried at night
  8. Rinse your face at least 3 – 4 times with chilled water during summers
  9. Best of luck for a successful beautification mission…
How much fare you could become after following all the treatments?

Look at your inner body that is the portion between your waist and shoulders, which remains covered all the time in your day-to-day life. You will find that the complexion of the skin of your torso is the fairest out of the skin of rest of your body. Similarly the skin of the inner aspect of you arms is much fairer than that of the outer portion of your hands. 

This difference of the color of complexion between the inner and the outer portion of your skin simply depends on the severity and period exposure to light (radiation of Sun). the more the skin is exposed to the radiations of Sun the darker the skin will be. 
Therefore, the maximum fair complexion possible for you to achieve is equivalent to that of the inner aspect of your arms or that of your trunk. 

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Disclaimer:
This article is written based on my personal observations. My intention for publishing the same is to provide healthy reading and intellectual entertainment and not for educating the visitors. No literature or authentic books have been referred for writing the contents of this article. The visitors are advised not to refer the contents of this article for any research or testimony on scientific, geographical, political, civic or legal purposes. The visitors are further advised to consult relevant experts before adapting any information from this article. The author or the website are not responsible for any errors, mistakes, or omissions there in.
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Health and Nutrition: How to Enhance Stamina…?

Cristiano Ronaldo

- Harish Jharia

In my words stamina can be assessed by the period of time you can do the heaviest possible physical workout with the fastest possible speed, without going breathless.

For example just try to ride a bicycle on an up-gradient road at the fastest speed and see how far you can maintain the speed before you give-up.

Physical requirements for strong stamina:
  1. Your rib-cage should be flexible to inflate and deflate so much so that you are able to inhale maximum possible oxygen at the time of workout.
  2. Your heart should be strong enough to pump blood all through your body and carry oxygen to keep the body charged-up for encountering the heavy workout done by your body.
  3. Your bone structure and muscles should be strong enough to withstand the physical exertion / fatigue / exhaustion encountered by your body during your workout.
What should you do for getting all the above:
  1. Take rich, nourishing and healthy diet inclusive of carbohydrates, proteins, fibers, milk, fruits, plenty of water. (No dieting during this period please)
  2. Go for regular cardiovascular workouts viz running, cycling, swimming, etc for 45 min in such a way that you go breathless and drenched in sweat.
  3. Make your life organized, neat &and clean and take sound sleep for minimum 8 hrs and maximum 9 hrs.
There is no substitute for hard work

Happy workout…

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Health and Nutrition: How can I Gain Weight and Look Healthy…?


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© Harish Jharia

For gaining weight you need to take nutritious food and for taking adequate food you need to feel hungry. In other words you enhance your appetite and then have an intake of lot of nutrients and rich food. Here are some suggestions for you:

How to enhance appetite:
  1. Exercise / physical work generate hormones that trigger our appetite
  2. Exercise / physical work improve our digestive system and triggers our appetite
  3. Do 45min cardiovascular workout or go for brisk running daily
  4. Have regular sound sleep for 8hrs in 24hrs
  5. Make your daily life regular and organized
  6. Do not eat or drink anything before your lunch / dinner time
  7. Follow a hygienic and clean way of living
  8. Follow fixed timings for going to toilet in the morning and in some case in the evening (aged people use to go in the evening also)
  9. Do not have a habit to worrying being touchy
  10. Keep happy and cheerful
What to eat and drink:
  1. Eat your breakfast, lunch and dinner at a fixed time
  2. Eat rich food… everything that is cooked at your home
  3. Take milk regularly
  4. Chicken, fish and eggs would be quite effective if you are a non-vegetarian
  5. Eat in adequate quantity
  6. Avoid fasting and skipping any of the three food intake
  7. Eat plenty of seasonal and local fruits
  8. Do not take packed / sealed fruit juices
  9. Better extract juice at home and drink. It is advisable to eat fruits rather than going for its   juice
  10. The fibers in fruits are also beneficial for you
  11. Do not go for dieting except junk / fast food
  12. In your case Ghee in moderate quantity and pasteurized butter as much you like would be an added supplement
  13. Don’t drink water during eating and immediately after eating
  14. Drink plenty of water throughout the day
  15. It is a good habit to have a bottleful of chilled water on your working table and taking a gulp or two every now and then
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How to remove moles or warts (मस्से) from our skin?


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There is no treatment like oral medicines or ointments for application for treating; removal of warts.

People talk about homeopathic treatment that is quite effective. It would be a good idea to visit a homeopath for his advice and treatment.

I have heard that homeopathic treatment is effective on some particular types of warts. The most common warts that look like projected or protruded moles of black or brown color are unlikely to be treated effectively by homeopathic treatment too. I have not heard of any other medical treatment that can remove warts.

Nevertheless, I had witnessed a wart removal cosmetic surgery in Gwalior, India, a few months back. I hope after reading this you might go for a cosmetic surgery.

Following is a detailed description of the entire case:

Patients: one each – a male and a female; both 50+ in age; no other complications.

Ailments: Warts all around neck area; round and protruding out of skin; color- skin-color and dark brown; bigger and more protruded ones were soft and in singles; smaller and less protruded ones were hard and in clusters.

Cosmetic surgery:

Surgeon applied anesthetic ointment and sealed each mole or wart with dressing tape and asked to wait for 45 minutes for the medicine to act.

After 45 minutes the surgeon removed the moles or warts by cutting each one of them with special scissors type of tools, one at a time and within a fraction of second treating each operated portion with an electric probe (not a LASER tool).

The probe appeared to have done two jobs- firstly trimming the tissues smooth and secondly closing the openings of nerve-ends to stop bleeding before shedding a single drop, thereby leaving the operated portion clean and dry.

The application of this probe ensures ‘no-scar’ results.

Currently these types of probes are widely used for this purpose world-over...
Patient feels no pain except a feeble prick...

Surgeon applied antibiotic ointment on the operated portion and prescribed 6day course antibiotic capsules or coated tablets and an ointment.

After 6 days the patients had a smooth wart free scar-less skin… If you have bigger warts the recovery time might be a bit more. Yet, all other conditions would be the same.

Expenses: I saw a good crowd of middle-class patients in the clinic; hence I think it to be affordable for most of us.

Wish you a smooth, wart free, scar-less skin

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Health and Nutrition: How to increase our height...?


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Increasing height of anyone is not like putting on weight or losing weight. It is not like curing any ailment with the help of medicine, therapy or injections.

Your height depends on your bone structure from your head to sole. Your flesh, muscles and other constituents are just covering your bone structure. As long as the bone structure doesn’t stretch in length, the question of any increase in your height doesn’t arise.

I do not want to discourage you from making efforts in your life to achieve something worthwhile. My aim is to alert you against getting exploited by many commercial bodies that claim to have medicines and therapies for increasing height. They eat away your money, energy and leave you disheartened and disillusioned with your life.

You should not even get misguided by advertisements on TV and print media about height gaining health drinks, herbs or medicines or any exercising package.

If you have crossed 19 / 21 years of age then accept your present height with grace and be proud of your persona you possess. Don’t waste time, energy and money on any commercial height gaining packages.

You keep growing taller as your age increases from late childhood to adolescence and to youth. This is the best time when you can make efforts for gaining your optimum height that depends on your genetic qualities.

In fact, you can only add-on to your growing height… a sort of supplement to the processes of gaining height. Nevertheless, it is not going to do any miracle. The following is what you can do between 9 to 19 years of age (some schools of thoughts say the maximum age limit is 21):
  1. You must take milk at least once a day… better in the morning
  2. You must take rich, nutritious, and healthy diet
  3. Take plenty of fruits including the local seasonal fruits
  4. Take plenty of salads
  5. Do not go for dieting or diet control
  6. Avoid junk food like pizza, burger, and soft drinks
  7. Keep away from bad company and alcoholic drinks / smoking
  8. Do stretching exercise for min 15 minutes
  9. Surya namaskar would add to your mission if you know how to do
  10. Go for 45 minutes fast running (it is a must for you)
  11. Play games like football, hockey and basketball
  12. Maintain quick reflexes and don’t be lazy in day-to-day life
As I have written above our height depends on our genetic characteristics and the natural size of our bone structure that grows until 19 / 21. You have asked whether growing prolongs until 24; for that I can say even I am not convinced with the limit of 21 years as some schools of thoughts believe.

You may visit Encyclopedia Britannica Site for detailed authentic information on the right age limit for growth.

A young man with an average height would look quite impressive if he maintains proper posture and wears a suitable dress.

For that you may like to follow the practice given below:
  1. Don’t stand on one leg. Distribute your weight on both of your legs while standing.
  2. Keep your backbone / spine in as vertical as possible. (within your comfort zone… don’t overdo)
  3. Don’t wear loose hanging pants below your belly-button level. Get pants that fit right at this button thereby the length of your pant will increase by 1” approx and your perspective height will add up.
  4. Always select a combination of darker pant + lighter shirt. (vertical stripes, if possible, would be better)
  5. Use shoes or other footwear with 1” for men and 2½ “for women heel (max) that will elevate your height by respective inches and will help in keeping your body upright. Please note that if you wear footwear with heels your body will stay upright.
There are many stretching exercises that will be advised by your gym instructor.
Nevertheless, I have found ‘Surya Namaskar’ the best possible exercise that is done in the morning after you wake up from your sleep and your body remains so very adoptive to exercises.

These exercises will help you in straightening your legs and spine thereby adding on to some extent to your resultant / perspective height.
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